नवरात्रि Navratri का पर्व पूरे भारत में श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इन 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। माता दुर्गा के 9 रूप होते हैं जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। इस वर्ष नवरात्रि 3 अक्टूबर से प्रारंभ हो रही है और 12 अक्टूबर को इसका समापन हो रहा है।
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नवरात्रि Navratri के 9 दिनों के बारे में जाने
घट स्थापना का शुभ समय
इस वर्ष नवरात्रि 3 अक्टूबर से प्रारंभ हो रही है और 12 अक्टूबर को इसका समापन हो रहा है। पहला घटस्थापना का शुभ मुहूर्त: प्रातः 6.24 बजे से 08: 45 बजे के बीच मिनट तक और दूसरा घटस्थापना का शुभ महूर्त: अभिजित मुहूर्त सुबह 11:52 बजे से दोपहर 12:39 बजे है। इस बार शारदीय नवरात्रि पर्व 9 दिन की बजाय 10 दिन के रहेंगे क्योंकि एक नवरात्रि की वृद्धि हो रही है जिसे श्रेष्ठ माना गया है। इस बार तृतीया तिथि की वृद्धि हुई है इस बार 5 एवं 6 अक्टूबर को तृतीया तिथि रहेगी। इस कारण शारदीय नवरात्रि का समापन 12 अक्टूबर को होगा और इसी दिन दशहरा (Dussehra) भी मनाया जायेगा।
कलश स्थापना की सामग्री (Kalash Sthapana Samagri)
चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र, साफ मिट्टी, मिट्टी का एक छोटा घड़ा, कलश को ढंकने के लिए मिट्टी का एक ढक्कन, गंगा जल, सुपारी, 1 या 2 रुपए का सिक्का, आम की पत्तियां, अक्षत / कच्चे चावल, मौली (कलावा /रक्षा सूत्र), जौ (जवारे), इत्र (वैकल्पिक), फूल और फूल माला, नारियल, लाल कपड़ा / लाल चुनरी, दूर्वा (घास) की जरूरत पड़ेगी।
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मां शैलपुत्री
नवरात्र के पहले दिन सफेद रंग के वस्त्र धारण करने वाली मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। सफेद रंग शांति का प्रतीक है। इस दिन सफेद रंग के कपड़े पहने से मन के अन्दर शांति और शीतलता का अनुभव होता हैं। इसी दिन घटस्थापना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए माता को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं। माता ने दाएँ हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है। इन्हें हेमावती तथा पार्वती के नाम से भी जाना जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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मां ब्रह्माचारिणी
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा की जाती है। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। माता ने इस रूप में फल-फूल के आहार से 1000 साल व्यतीत किए। जब माँ ने भगवान शिव की उपासना की तब उन्होने 3000 वर्षों तक केवल बिल्व के पत्तों का आहार किया। अपनी तपस्या को और कठिन करते हुए, माँ ने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और बिना किसी भोजन और जल के अपनी तपस्या जारी रखी, माता के इस रूप को अपर्णा के नाम से जाना गया।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां ब्रह्मचारिणी की आरती – CLICK HERE
मां चन्द्रघण्टा
इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इनका वाहन सिंह है। इनके दस हाथ हैं। वे खडग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं। यह देवी पार्वती का विवाहित रूप है। भगवान शिव से विवाह के पश्चात देवी महागौरी ने अर्ध चंद्र से अपने माथे को सजाना प्रारंभ कर दिया, जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चंद्रघंटा के रूप में जाना जाता है। वह अपने माथे पर अर्ध-गोलाकार चंद्रमा धारण किए हुए हैं। उनके माथे पर यह अर्ध चाँद घंटा के समान प्रतीत होता है, अतः माता के इस रूप को माता चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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मां कुष्मांडा
नवरात्र के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। जब सृष्टि नहीं थी और चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार था, तब माता ने ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है। इनका वाहन सिंह है। माता की 8 भुजाएँ हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। देवी कूष्माण्डा, सूर्य के अंदर रहने वाली शक्ति और क्षमता रखती हैं। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः माँ के इस रूप को अष्टभुज देवी के नाम से भी जाना जाता है। कुष्मांडा देवी यश और धन की वर्षा करती है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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मां सकन्दमाता
नवरात्र के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की अर्चना की जाती है। जब देवी पार्वती भगवान स्कंद की माता बनीं, तब माता पार्वती को देवी स्कंदमाता के रूप में जाना गया। इनका वाहन सिंह है। माता की चार भुजाएँ हैं। दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। वह कमल के फूल पर विराजमान हैं, और इसी वजह से स्कंदमाता को देवी पद्मासना के नाम से भी जाना जाता है। देवी स्कंदमाता का रंग शुभ्र है, जो उनके श्वेत रंग का वर्णन करता है। जो भक्त देवी के इस रूप की पूजा करते हैं, उन्हें भगवान कार्तिकेय की पूजा करने का लाभ भी मिलता है। भगवान स्कंद को कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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मां कात्यायनी
नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। माँ पार्वती ने राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए देवी कात्यायनी का रूप धारण किया। यह देवी पार्वती का सबसे हिंसक रूप है, इस रूप में देवी पार्वती को योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है। इनका वाहन सिंह है। माता की चार भुजाएँ हैं। दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। माँ के बाँयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है । धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी पार्वती का जन्म ऋषि कात्या के घर पर हुआ था और जिसके कारण देवी पार्वती के इस रूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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मां कालरात्रि
नवरात्र के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। जब देवी पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नाम के राक्षसों का वध के लिए माता ने अपनी बाहरी सुनहरी त्वचा को हटा कर देवी कालरात्रि का रूप धारण किया। माता के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्माण्ड के समान गोल हैं। माँ के बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। देवी कालरात्रि का रंग गहरा काला है। कालरात्रि देवी पार्वती का अति-उग्र रूप है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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मां महागौरी
नवरात्र के आठवें दिन देवी महागौरी का आराधना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए माता को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं। माता की चार भुजाएँ हैं इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह साल की उम्र में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर थीं। अपने अत्यधिक गौर रंग के कारण देवी महागौरी की तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के सफेद फूल से की जाती है। अपने इन गौर आभा के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। माँ महागौरी केवल सफेद वस्त्र धारण करतीं है उसी के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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मां सिद्धिदात्री
नवरात्र के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माता का वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। माता के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। शक्ति की सर्वोच्च देवी माँ आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती है। माँ सिद्धिदात्री केवल मनुष्यों द्वारा ही नहीं बल्कि देव, गंधर्व, असुर, यक्ष और सिद्धों द्वारा भी पूजी जाती हैं। जब माँ सिद्धिदात्री शिव के बाएं आधे भाग से प्रकट हुईं, तब भगवान शिव को अर्ध-नारीश्वर का नाम दिया गया। माँ सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान हैं।
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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