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SARITA CHAUHAN KI KAVITA

शीर्षक:- हे हे श्याम
जगत बिहारी कृष्ण मुरारी
हे श्याम गिरधारी।
माखन चोर मटकी फोड़
तू नटखट है नंदकिशोर
तेरी लीला न्यारी
जगत बिहारी कृष्ण मुरारी
सबकी सुनते कुछ नहीं कहते
सबके मन की व्यथा समझते
तेरी छवि है न्यारी
जगत बिहारी कृष्ण मुरारी
मधुर मुरलिया की धुन सुन के
गोपिया दौड़ी आएं
ग्वाल बाल सब सखा तुम्हारे
तुझको नित्य बुलावे
मुरली की धुन है प्यारी
जगत बिहारी कृष्ण मुरारी
तुझ बिन ना कोई रैना बीते
रात भजन कर सोऊं
ऐसी चाह हमारी
जगत बिहारी कृष्ण मुरारी।
तुझसे मिले बिन रहा न जाए
दुनिया के दुखसहा न जाए
जाऊं कहां तजि शरण तिहारी
है गोवर्धन गिरधारी
जगत बिहारी कृष्ण मुरारी।
शीर्षक:- तू जो मिल गया है
तेरी बाहों में खोकर मैं
कि जैसे खुद को पा गई
तू मिला तो ऐसे मिला
कि सारे जहां की खुशियां मेरे दिल में समा गई
हर दिन अब धीरे-धीरे सुहाना लगने लगा है
रात खुशनुमा लगती है
तेरी तन्हाई में
यह सारी प्रकृति बेवफा लगती थी
मैं बहुत खुश रहने लगी हूं
अब तू जो मिल गया है
मेरी वजूद मेरी पहचान बन गए हो तुम
मेरी जान और जहां बन गए हो तुम
मेरी सांसों में तेरी यादें बस गई है
जब से तू चाहत बनाकर मेरे दिल में आ गए ।
तू मेरे लिए कितना अजीज हो गए हो
मेरे दिल के इतने करीब हो गए हो
की हर वक़्त तेरे साथ बीत जाए तो भी वक्त कम ही लगेगा
जैसे कोई बिछड़ हुआ मीत मिल गया
क्या करूं इस एहसास का
कैसे बताऊं कि तुझसे मिलकर कितनी खुशी हो रही है
इस शहर की शाम जैसे रंगीन हो गई है।
हर तरफ सजी सगाई बाजार दिख रही है।
कहां से क्या-क्या खरीदें की तुझे यूं ही देखती रहूं।
कुछ समझ में नहीं आता कि तुझसे एक पल के लिए दूर कैसे रहूं।।
शीर्षक:- मैं लिखती हूं
उसके दर्द भरे दिल को,
उसके आहट को लिखती हूं।।
उसके दिल में प्यार छुपा जो,
उसकी धड़कन को लिखती हूं।।
उसकी सांसों में बस कर मै,
उसकी बातों को लिखती हूं।।
उन लम्हों को उन यादों को,
दिल में बस कर लिखती हूं।।
कहते थे तुम मेरी हो,
दिल की धड़कन में रहती हो।।
आज न जाने क्या हो गया,
अनजाने अनजाने से रहते हो।।
रात सुहानी नई भोर मे,
मुझको ना पहचान सके।।
तेरे इस अफ़साने में,
आहें भर भर कर जीती हूं।।
भीगी पलकें गीला तन है,
जब से मिला तुझसे मेरा मन है।।
मन में तन में नयन में बस कर,
हर पल मुझको ही छलते हो।।
इस छलिया की यही कहानी,
तेरी यादों को लिखती हूं।।
कोरे कागज के पन्नों पर,
तेरी प्रेम कहानी लिखती हूं।
दिल में बस कर दर्द दिया जो,
उस दीवाने को लिखती हूं।।
मीठी- मीठी बातें उसकी,
उस दोहरेपन को लिखती हूं
लिख ना सकी जो मैं उसको तो,
कौन उसे पढ़ पाएगा।।
इस छलिया इस बलिया का
कोई भी पार ना पायेगा।
कहते थे तुम मेरी हो,
मेरे दिल की धड़कन हो।।
मेरे तन -मन- प्राणों में,
तुम ही तुम बसती हो।।
बसती थी मैं हर पन्नो में,
स्याही -स्याही सी छपती थी।।
उसकी तारीफों में मैं थी,
कागज भी कम पड़ती थी।।
आज उन्हें यादों में खोकर,
बीती बातों को लिखती हूं।।
बीते पल के याद सुनहरे,
उन यादों को मैं लिखती हूं।।
शीर्षक:- तिरंगा लहर रहा हर घर
प्रभा की धारा मचल रही है
करने को अभिषेक
तिरंगा लहर रहा हर घर
तिरंगा फहर रहा घर- घर ।
हर्षित तन है मन है प्रफुल्लित
गूंज रहा है भारत माता की जय घोष
तिरंगा लहर रहा घर-घर
तिरंगा फहर रहा घर-घर।
जाति धर्म मजहब से ऊपर
है यह प्यारा देश।
दुनिया वालों को देता यह
मानवता का संदेश
तिरंगा लहर रहा घर-घर
तिरंगा फहर रहा घर-घर।
मेरा देश मेरा भारत
प्राणोंं से भी प्यार है
देश की जान देश की शान
देश का मान तिरंगा है
तिरंगा लहर रहा हर घर
तिरंगा फहर रहा हर घर।
हर घर तिरंगा घर-घर तिरंगा
मोदी जी का है अभियान
देश के वीरों देश के प्यारों
सफल करो तुम यह अभियान
चांद पर पहुंचाया तुमने तिरंगा
बनाकर के तुम चंद्रयान
देश को तुम पर है अभिमान
तिरंगा लहर रहा हर घर
तिरंगा फहर रहा हर घर।
राष्ट्र का गौरव गाथा लिखने
निकल पड़े महायोगी हैं।
अपनी संस्कृति कभी ना भूलें
ऐसे वो महायोगी हैं।
तन पर भगवा मन पर अंकुश
राष्ट्र के हित में जीवन है
कीर्ति पताका लहर रही है
दुनिया भर में आज
तिरंगा लहर रहा हर घर
तिरंगा फहर रहा हर घर।
स्वरचित–
डॉ सरिता चौहान
प्रवक्ता हिंदी
ए डी राजकीय कन्या इंटर
कॉलेज। निकट बक्शीपुर गोरखपुर।
पिन कोड-274 3 01