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NITESH GADWAL KI KAVITA

शीर्षक:- एक रात, एक बात लिखेंगे
एक रात, एक बात लिखेंगे,
इस ज़िंदगी की हर सौगात लिखेंगे।
जो कह न सके दिन की भाग-दौड़ में,
उन्हें चाँदनी की ज़ुबान में रात लिखेंगे।
कुछ आँसू जो पलकों में कैद हैं अभी,
कुछ सपने जो अब तक ज़िंदा नहीं,
उनकी भी आवाज़ बनेंगे हम,
खामोशियों की वो बात लिखेंगे।
हर टूटे रिश्ते की टीस को,
हर अधूरी ख्वाहिश की पीस को,
हर दर्द जो मुस्कुराहट में छुपा है,
हम उसकी असल औक़ात लिखेंगे।
कभी जो ग़म दिल से कह नहीं पाए,
कभी जो लोग हमसे बहाने में बिछड़ गए,
उन पलों को भी आज जिंदा करेंगे,
और बिछड़ों का हिसाब-किताब लिखेंगे।
काग़ज़ पे नहीं, जज़्बातों में कलम डुबोकर,
इस रात को यादगार रात लिखेंगे।
जो कहा नहीं कभी ज़िंदगी से हमने,
आज वो हर अनकही बात लिखेंगे।
शीर्षक:- तिनका-तिनका उठाना होता है
यूँ ही नहीं मिलती राही को मंज़िल,
एक जुनून सा दिल में जगाना होता है।
हर ठोकर को सीढ़ी बनाना पड़ता है,
अंधेरों में भी दीप जलाना होता है।
पूँछा चिड़िया से… कैसे बना आशियाना?
बोली —
भरनी पड़ती है उड़ान बार-बार,
तिनका-तिनका उठाना होता है।
कभी तेज़ हवाओं ने घोंसला गिरा डाला,
कभी बारिश ने सब कुछ बहा डाला।
पर हिम्मत नहीं हारी, उम्मीद फिर संजोई,
हर बार मिट्टी में से फिर से जान बोई।
पंख छोटे थे, पर हौसले बुलंद थे,
बदन थका था, पर सपने चंदन थे।
ना रोई, ना रुकी, बस चलती रही,
हर हार से कुछ न कुछ सीखती रही।
आज जब बैठी हूँ शाख पे सुकून से,
लोग कहते हैं — कितनी प्यारी उड़ान है!
मैं मुस्कराती हूँ, कहती हूँ —
ये उड़ान नहीं, मेरी रातों की थकान है।
संघर्ष हो चाहे छोटा या बड़ा,
सपनों को बुनने के लिए गिरना पड़ता है।
जिन्हें मंज़िल पानी हो,
उन्हें तिनका-तिनका उठाना पड़ता है।
शीर्षक:- “जुनून की उड़ान”
यूँ ही नहीं मिलती राही को मंज़िल,
एक जुनून-सा दिल में जगाना होता है।
अंधेरे चीर के बढ़ना पड़ता है आगे,
हर मोड़ पे खुद को आज़माना होता है।
ठोकरें लगें तो मत ठहरना कभी,
हर चोट से कुछ सीख जाना होता है।
आँधियाँ चाहे जितनी भी ज़ोर मारें,
दीप खुद को और जलाना होता है।
रास्ते हों मुश्किल, या हों सुनसान,
सपनों को फिर भी निभाना होता है।
यूँ ही नहीं बनते इतिहास के पन्ने,
खुद को उस आग में तपाना होता है।
शीर्षक:- “मैं कौन हूँ?”
जब तन्हा होता हूँ, सवाल उठते हैं,
क्या बन पाऊँगा? ये रास्ते किस ओर मुड़ते हैं।
ख़्वाबों का बोझ है, उम्मीदों की बातें,
हर चुप्पी के पीछे हैं हज़ारों रातें।
कभी दिल बोलता है, कभी दिमाग समझाता है,
फ़ैसलों की इस जंग में हर मोड़ कुछ सिखाता है।
बदलाव से डरता नहीं, मैं उसे जीता हूँ,
हर नए सफ़र में खुद को फिर से सीता हूँ।
सबसे बड़ा सबक, माँ-बाप की बातों में पाया,
त्याग, प्रेम और धैर्य से जीवन का सच समझ आया।
झूठ से चिढ़ है, क्योंकि वो सच्चाई को तोड़ देता है,
एक रिश्ता, एक भरोसा चुपचाप मार देता है।
खुश हूँ जब किताबें खुलती हैं,
हर शब्द जैसे रूह को छूती हैं।
कहानियों में जीता हूँ, हकीकत से दूर,
पर वहीं मिलता है मुझे अपना असल सुकून भरपूर।
प्यास है एक सच्चे प्यार की, जो बिना शर्त हो,
ना कोई दिखावा, ना बनावट – बस भीतर से जुड़ने का जोश हो।
कभी खुद को जीता हूँ, कभी दुनिया की अपेक्षाओं में खो जाता हूँ,
पर हर बार आईने में खुद से नज़रे मिलाता हूँ।
अगर कोई कह दे – “तू जैसा है वैसा ही ठीक है”,
तो शायद फिर मैं दुनिया से कुछ भी नहीं छुपाऊँ।
खुलकर हँसू, खुलकर रोऊँ,
और सबसे पहले खुद को अपना बनाऊँ।
यह मैं हूँ… एक सवालों भरी किताब,
पर हर पन्ना सच्चा है, हर जज़्बा लाजवाब।
शीर्षक:- चाँद का दर्द
चाँद पर काली घटा छाती तो होगी,
उसकी रौशनी भी कभी थक जाती तो होगी।
सब कहते हैं वो सबसे हसीं है,
पर वो भी किसी रात टूट के रोता तो होगा।
तारों की महफ़िल में रहते हुए भी,
कभी अपनी तन्हाई से डरता तो होगा।
जो हर दिल के ख्वाबों में आता है,
वो भी किसी की याद में सुलगता तो होगा।
चुपचाप चमकने का हुनर रखता है,
पर अंदर ही अंदर वो भी बिखरता तो होगा।
जिसे सबने चाहा, सबने पूजा,
वो भी एक नज़र को तरसता तो होगा।
कभी घटा से ढक जाए उसका नूर,
तो किसी की बेरुख़ी समझ आता तो होगा।
चाँद पर काली घटा छाती तो होगी,
पर उससे ज़्यादा अँधेरा उसके दिल में बसता तो होगा।
शीर्षक:- ख्वाबो की उड़ान
हर रात जब थक कर आँखें बंद करता हूँ,
तो एक नई दुनिया में खुद को जिंदा पाता हूँ।
जहाँ न रुकावटें हैं, न कोई हदें बाँधती हैं,
बस ख्वाब ही हैं जो उम्मीदें संवारती हैं।
सपने… जो कभी टूटते हैं तो आँखें भीगती हैं,
मगर उन्हीं से फिर हर सुबह उम्मीदें जागती हैं।
ये सिर्फ़ सोने की चीज़ नहीं, ये जीने की वजह हैं,
जो मंज़िल से पहले हौसलों की सीढ़ियाँ बनते हैं।
कभी कांटे बिछते हैं, कभी रस्ते थम जाते हैं,
पर सपने ही हैं जो अंदर की आग को ज़िंदा रखते हैं।
जो हँसकर कहें – “अभी हार नहीं मानी”,
वो ही लोग एक दिन बदल देते हैं कहानी।
शीर्षक:- अकेलापन
भीड़ में भी अक्सर खुद को तन्हा पाता हूँ,
हँसी के पीछे दर्द का समंदर छुपाता हूँ।
कभी सोचता हूँ कोई समझे बिना कहे,
फिर हकीकत जानकर बस चुप रह जाता हूँ।
काग़ज़ से बातें करता हूँ रात की खामोशी में,
दिल की गिरहें खुलती हैं अश्क़ों की बारिश में।
जिनसे उम्मीदें थीं, वही सबसे दूर हो गए,
अब तो अपने ही साये भी अजनबी से लगते हैं।
कई बार लगता है – क्या मैं ही ग़लत था?
या फिर वक़्त ही सवालों से भरा पल था?
जिनके लिए सब कुछ छोड़ा, वो साथ छोड़ गए,
अब रिश्तों की भीड़ में बस मैं… और मेरा अकेलापन रह गए।
शीर्षक:- सपनो की उड़ान
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है,
ख़्वाबों को हक़ीक़त बनने में वक्त तो लगता है।
आज जो जमीन पर हैं, कल वो आसमान होंगे,
पर हर ऊँचाई को छूने में वक्त तो लगता है।
हवाएं रुकावट बनेंगी, तूफ़ान भी आएंगे,
टूटे हुए पंखों से इरादे भी बनाएंगे।
जो जलते हैं अंदर से, वही रोशनी लाते हैं,
पर उस आग को चमकने में वक्त तो लगता है।
हर गिरावट एक उड़ान की तैयारी होती है,
हर तकरार में छुपी एक जीत भारी होती है।
जो चलते हैं सब्र से, वही इतिहास रचता है,
मंज़िल जब सच्ची हो, तो वक़्त तो लगता है।
शीर्षक:- हौंसलों की उड़ान
छोटा हूँ मगर ख्वाब बड़े देखता हूँ,
ठोकरों से नहीं डरता, रास्ते खुद तय करता हूँ।
लोग हँसते हैं जब बुलंदी की बात करता हूँ,
उन्हीं हँसी के पीछे जीत की आवाज़ भरता हूँ।
कंधे कमजोर हैं, पर हौसले आसमान छूते हैं,
पसीना बहता है, तो सपने भी सच्चे लगते हैं।
आज नहीं तो कल मेरा वक्त आएगा,
मेहनत का सूरज हर शक को जलाएगा।
काग़ज़ पे लकीर नहीं, मैं मुक़द्दर खुद लिखता हूँ,
छोटा हूँ मगर ख्वाब बड़े देखता हूँ।
शीर्षक:- नींव के पत्थर
दुनिया ने मेरी बुलंदियाँ देखीं,
किसी ने पाँव के छाले नहीं देखे।
हर मुस्कान के पीछे थी तड़प,
पर वो आँसू किसी ने नहीं देखे।
जो कहते हैं मैं किस्मत वाला हूँ,
उसने मेरे हालात कहाँ देखे?
टूटकर भी चलता रहा हर रोज़,
पर दिल के सवाल किसी ने नहीं देखे।
मैं गिरा, उठा, फिर चला अकेला,
इन पैरों के जलते थाले नहीं देखे।
जिन्होंने मेरी उड़ान पे शक किया,
वो मेरे टूटे पर नहीं देखे?
आज मैं आसमान सा ऊँचा हूँ,
पर उस नींव के पत्थर नहीं देखे।
जो कहते हैं ‘तू तो नसीब वाला है’,
उनके अंदर कभी मेरे जाले नहीं देखे।
दुनिया बस शोहरत पे नाचती रही,
मेरी तपस्या के उजाले नहीं देखे।
हक़ीक़त की धूप में मैं जलता रहा,
पर मेरे छालों के उजाले नहीं देखे।
शीर्षक:- जूनून
जला दो अपनी हदें, अब और मत सहो,
अभी नहीं तो कब, खुद से ये कहो।
जिस दिन तू खुद को पहचान जाएगा,
सारा ज़माना तेरा नाम दोहराएगा।
मत देख कि राह में कितने पत्थर हैं,
उठा हथौड़ा, बता कि तेरे भी अंदर हैं।
ये पसीना नहीं, ये तेरी आग है,
जो जल उठी तो हर हार भी राख है।
जिसे कहते हैं किस्मत, वो काग़ज़ के टुकड़े हैं,
जो लिखते हैं उसे, वो तेरे हौंसले हैं।
अब फैसला तू कर — झुकेगा या चलेगा,
या आग बनकर सबको जला के निकलेगा।
दहाड़ बन, तूफ़ान बन, पर रुक मत जाना,
तेरे पीछे इतिहास होगा, आगे ज़माना।
हर चोट को ताकत बना, हर आँसू को हथियार,
तू इंसान नहीं, तू है इंक़लाब की पुकार!
अब वक़्त है, खुद को साबित करने का,
अब वक़्त है, ज़िंदा होने का,
अब वक़्त है, दुनिया को हिला देने का —
एक जुनून, जो रगों में आग भर दे!
शीर्षक:- हौसले की आग
सूरज जैसा बनना है, तो सूरज जैसा जलना होगा,
हर दिन तपकर अग्निपथ पर चलना होगा।
बुझने से पहले, खुद को दहकाना होगा,
हौसले को लोहे सा नहीं — आग सा बनाना होगा।
अगर लक्ष्य बड़ा है, तो संघर्ष भी बड़ा होगा,
हर मोड़ पर कांटे होंगे, हर सांस पे पहरा होगा।
रुकना नहीं, झुकना नहीं — बस चलना होगा,
हर दर्द को सीने में दबाकर पलटना होगा।
मंज़िल अगर तूफ़ानों के पार होगी,
तो लहरों से लड़ने का हौसला भी तेरे अंदर होगा।
वक़्त से जीतना है अगर,
तो हर लम्हा रणभूमि जैसा बनाना होगा।
जो अपने भाग्य को खुद लिखे, वही सिकंदर होगा,
बाक़ी सब भीड़ का हिस्सा बनकर बिखरता होगा।
अगर इतिहास में नाम दर्ज़ कराना है तुझे,
तो आज ही खुद से वादा निभाना होगा।
सूरज जैसा बनना है, तो सूरज जैसा जलना होगा,
हर रोज़ खुद को राख से फिर से खड़ा करना होगा।
शीर्षक:- मैं भी इतिहास लिखूँगा
कुछ रास्ता लिख देगा, कुछ मैं लिख दूँगा,
जो अधूरी कहानी है, उसे भी लिख दूँगा।
जहाँ हर तरफ़ चुप्पी है, आवाज़ लिख दूँगा,
जो खो गया है कहीं, वो अंदाज़ लिख दूँगा।
जो पत्थरों ने रोकी है, वो राह लिख दूँगा,
जो जले न अब तक, वो आग लिख दूँगा।
जिसे सबने ठुकराया, वही नाम लिख दूँगा,
जो मिट गया इतिहास से, वो काम लिख दूँगा।
हर आँसू की चमक में विश्वास लिख दूँगा,
हर जख़्म की पीड़ा में प्रकाश लिख दूँगा।
जहाँ उम्मीद टूटी हो, वहाँ साँस लिख दूँगा,
और अगर कोई ना समझे — तो भी लिख दूँगा।
कुछ रास्ता लिख देगा, कुछ मैं लिख दूँगा।
शीर्षक:- मंजिल के मुसाफिर
छोटे कदम भी मंजिल तक पहुँचाते हैं,
जो थकते नहीं, वही इतिहास बनाते हैं।
अंधेरे राहों से जब डर मिटाते हैं,
तभी तो चमकते सितारे कहलाते हैं।
जो घबराते हैं, वो रुक कर रह जाते हैं,
जो लड़ते हैं, वो मुक़द्दर जगाते हैं।
हवा के रुख़ को जो मोड़ जाते हैं,
वो ही ज़माने को राहें दिखाते हैं।
हमें गिरने से क्या डर लगाते हैं?
हम तो ठोकरों से ही चलना सीख जाते हैं।
जो टूटे नहीं, वही असली बन जाते हैं,
हर वार झेलकर और धार बढ़ाते हैं।
छोटे सही, पर कदम अगर उठाते हैं,
तो पहाड़ भी झुक कर रास्ता बनाते हैं।
जिनमें आग हो, वो ही जलते हैं,
और रोशनी से ये जग रौशन कर जाते हैं।
शीर्षक:- जिंदा की भूख, मुर्दे की भोज
कफ़न सस्ता है इस ज़माने में,
पर कपड़े रोज़ के महंगे हो गए हैं,
जो जीते हैं वो तरसते हैं रोटी को,
जो मर जाते हैं, उनके लिए भोज हो गए हैं…
जिन्हें जीते जी दवा नसीब न हुई,
मरने के बाद फूलों से लदा कर दिया,
जो माँगे थे जीते जी कुछ सहारे,
अब उनके नाम पर ट्रस्ट खड़ा कर दिया।
दरवाज़े बंद थे जब तक साँसें चल रही थीं,
अब हर गली में फोटो टंगी है,
तन्हाई में जो चुपचाप रोता रहा,
आज उसकी याद में भीड़ जमा हुई है।
बेटा नौकरी के लिए धक्के खाता रहा,
पिता की चिता पर लोगों ने सर झुकाया,
वो माँ, जो इलाज के लिए तड़पती रही,
उसके नाम का आज अस्पताल खुलवाया।
ज़िंदगी में जो अनसुना रहा,
मौत के बाद ‘सम्मानित’ हो गया,
जो ज़िंदा रहा भीड़ में गुमनाम सा,
अब शहीद बनकर पहचानित हो गया।
जो भूखे पेट रातें काटता रहा,
उसके मरने पर हलवा-पूड़ी चढ़ाई गई,
जिसने जीवनभर माँगा एक तकिया,
उसे मखमली चादर में सुलाया गया।
ये कैसी दुनिया है, ये कैसा मेला है,
जहाँ साँस लेने वाले को कोई न पूछे,
और मृत देह पर भी मेला है…