हमारी वेबसाइट “Science ka Mahakumbh” में आपका स्वागत है। यहां पर जसवंत सिंह कुशवाह जी की कविता प्रकाशित किया जाएगा। आप सभी इसका आनंद लीजियेगा।
JASWANT SINGH KUSHWAHA KI KAVITA

शीर्षक:- वृक्ष
जीवन आधार जीवन का सार है
प्राणवायु के द्योतक हम सब के आधार है
इन्ही से चलता हमारा संसार है ….
पर सत्ता यह समझ नहीं पाती है
झूठे वादे देकर बहलाती है
“एक पेड़ मां के नाम ” लगाकर
अभियान चलाया जाता है तो
दूसरी सौर थार का कल्पवृक्ष
रात दिन उजाड़ा जाता है
सत्ता का यह दोहरा चरित्र
कब तक हम यह सहते रहेंगे
विकास के नाम पर
कब तक
हमारे जल जंगल जमीन उजड़ते रहेंगे
है प्राणवायु के हत्यारों
है विकास के लालचंदों
कब तक लालच में यू तुम बेचते रहोगे
अपनी ही मातृभूमि को तुम बंजर करते रहोगे
शीर्षक:- भ्रष्टाचार
कौन दायी होगा
उस दारुण दुःख का,
छत नहीं गिरी वो वो
था काल, गिरा था।
थे जो भारत का भविष्य
आज सिस्टम ने
उसी को ग्रहण लगाया था ।
भेजा था मां ने
लाल मेरा होनहार बनेगा
पर क्या पता था उसको
लाल उसका
भ्रष्ट काल का ग्रास बनेगा
भ्रष्टाचार के इस
असहाय दारुण दुःख का
पता नहीं
अभी और
कितना ये समाज सहेगा—!!
शीर्षक:- मेरे अन्दर से गांव नहीं जाता
हां में आ तो गया हूं शहर
अपने सपनों के लिए
कुछ अपनो के लिए ,
पर कभी कभी मन को
संभाला नहीं जाता
हां मेरे अन्दर से गांव नहीं जाता ,
शहर में एक किराये का कमरा
उसी में बनाता सपनों का आशियाना
उसी में सुबह से शाम किताबों में हो जाना
उसी सपनों में गांव का एक आशियाना बनाना ,
याद वो सावन की फुहार वो भादो की बौछार
बाबा का डांटना और मां का पुकारना
आंखों में आसूं के साथ चलते जाता है
हां मेरे अन्दर से गांव नहीं जाता
आ तो गया शहर में पर
वो गांव की बस्ती का प्यार
वो रोज की तालाब पाल का घुमना
और डोर चराने जंगल में जाना
वो जंगल की बहार की खुशबू संग में चलते जाना
याद आता तो में उदास हो जाता
हां मेरे अन्दर से गांव नहीं जाता
वो खेतों की हरियाली
बरसात और सर्दी की रातों की जाली
खेत की मड़ैया, ऊपर की छतरी
मक्के के खेत, गेहूं की बाली
सभी संग लेकर शहर के कमरे में
आंसू तर कर अपने कमरे में
में चलता जाता
हां मेरे अन्दर से गांव नहीं जाता
हां एक आस तो है
होगा सपना पूरा एक दिन
मां बाबा संग गांव में रहूंगा
बड़ा सा घर खेत खलिहान होंगे
यह सपना देख में बस चलता जाता
हां मेरे अन्दर से गांव नहीं जाता ….
शीर्षक:- सड़कों पर ख़्वाब रौंदे जाते हैं
सड़कों पर ख़्वाब रौंदे जाते हैं ,
संसद में सिर्फ योजनाओं के बिज बोए जाते हैं !
चलना है जिस जगह निर्माण पथ पर ,
वहां कब तक भ्रष्टाचारी आएंगे !
चीखती है यहां अब संसद की दीवारें ,
कब यहां भ्रष्टाचारी ढहाए जाएंगे !
आना जाना चलता है हर बार यहां पर ,
कब यहां पर ईमानदार से कर्म निभाए जाएंगे !
कर्म और अधिकार भी चिंतित है ,
कब यहां पर स्वतंत्रता के मोल चुकाएं जाएंगे !
शीर्षक:- अन्तर्द्वन्द
जिम्मेदार आप थे में नहीं
खिलाफ आप थे में नहीं
बनावटी चेहरा आपका
बनावट आप थे में नहीं
गिरी जब बारिश
बूंद आप थे
खारा समंदर आप थे
नदी का झरना आप थे
ताल तालिया
संगम घाटी
पुरानी यादें
काटी जो राते
बीती जो बाते आप थे
आप नही तो
कुछ भी नही
फिखा सावन
रुखा मौसम
उजड़ा जैसे अंतर्मन
मन के भीतर सब रिसता है
मन के भीतर मन बसता है
ये मौसम ये सावन तो चलता है
उजड़े अन्तर्मन में
फिर एक द्वंद पलता है
फिर सब रिसता है
मन के भीतर मन बसता है
नाम जसवंत सिंह कुशवाह
परास्नातक (हिन्दी साहित्य)
कोटा विश्वविद्यालय,कोटा राजस्थान
Ex. Secretary – Kota Technician chapter (student chapter)
Kota local centre kota
The institution of Engineers,India
शिक्षा – polytechnic – Electrical Engineering
AMIE/ B.E.(Sec.B) – Electrical Engineering (IEI kolkata)
B.A. +. B.Ed. – Hindi,History,sociology
M.A. – Hindi, History
पता – ग्राम व पोस्ट मोठपुर तह . अटरू जिला बारां राजस्थान