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HARSH HASRAT KI KAVITA

शीर्षक:- किताबें
किताबों से अब भी फूल झड़ते हैं,
किताबें अभी यादें संजोती हैं,
अब भी राजदार हैं किताबें,
पर सोख लेती हैं किताबें,
उन फूलों के रंग,
वर्क खींच लेते हैं सारी खुशबू,
मगर महफूज़ रहतीं हैं,
वो वजहें वो किस्से,
जिनसे फूलों का राब्ता था।
© हर्ष हसरत
Harsh Hasrat
Reotipur, Ghazipur U.P.
2005
B.A. philosophy BHU (current)