हमारी वेबसाइट “Science ka Mahakumbh” में आपका स्वागत है। यहां पर आर्य दिव्य सम्राट जी की कविता प्रकाशित किया जाएगा। आप सभी इसका आनंद लीजियेगा।
ARYA DIVYA SAMRAT KI KAVITA

शीर्षक:- वे पागल हुए नहीं बना दिए गए
थक गए हो , तोह सुनो,
वे पागल हुए नहीं बना दिए गए
पहले उनके पैर पकड़े गए
फिर हाथ,
फिर एकदम से मन घुमा दिया गया
अनजाने में नहीं,
जानबूझकर उनकी सारे अरमानों को
तहस नेहस कर,
उसका सोचना तोड़ा , फिर समझना
फिर एकदम से छोड़ दिया
वे पागल हुए नहीं उन्हें बना दिया गया
खुद में बहका था, मन भी मठ मैला था
जी करता तो कहीं बीच सड़क पर मार देते
लेकिन उसने मराने की जगह उसे जीवन दे दिया
अगर थक गए हो तोह सुनो,
अरमानों को चुनो,
जीवन को , प्रेम को,
मगर भरोसे अक्सर टूट जाते है
लोगों को लूट जाते है ,,,
और यादों को मार देते हैं,
जीते जी…. पागल बना देते है !!
शीर्षक:- बदलाव
बदलाव जो उनको चाहिए था, मुझमें !
मुझे मायूस कर रहा है,
मैं नहीं बदल पा रहा
उसको कैसे बताऊं
वो छोड़ देगी,
और कहती है, ये शख्स मेरे लायक नहीं,
कहती है, तुम खुद को भी समझते नहीं,
उसे क्या पता मैं एक किताब नवीं दफा पढ़ने को अपनी परीक्षा भूल जाता हूं, मैं कविता लिखते लिखते , सांझ सुबह भूल जाता हूं
वे कहती है, I Hate Poetry !!!
मैं क्या कहूं उनसे , जो मेरे जीवन को समझने में सक्षम नहीं ,
यूं तो अरमान बहुत है,
आसमान , जमीन , जल , वायु, सब को समीप से देखूं,
लेकिन मोहब्बत में अरमान पूरे कहां होते,
आंसू निकलने से पहले, सूख जाते है