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AJAY NEMA KI KAVITA

शीर्षक:- ओ री स्याही
ओ री स्याही,गूँगी मत रह,बोल कुछ
क्या सच है ज़ुबाँ तू खोल कुछ
मत बाँध पट्टी आँखों पर,न अँधी बन
देख आँखें फाड़ के, फिर बोल कुछ
मत लँगडा, मत घिसट, मत घबरा
सच के रस्ते पर ज़रा तू दौड़ कुछ
हारी बाजी जीत ले,कर ऐसा कुछ
लहू से अपने पन्नों पर तू घोल कुछ
शीर्षक:- सूरज का बिछौना
शाम होते ही बढ़ जाती हैं
मेरी परेशानियाँ
रोज़ वही शाम वही काम
सूरज का बिछौना लगाना है
थक गया होगा मालिश कर
थोड़ा पैर दबाना होगा
नन्हीं किरणें भी पस्त हुईं
धुमड़ा धुमड़ाकर
फिर कोई नई लोरी गुनगुनाकर
उन्हें भी सुलाना होगा
काम ख़त्म नहीं यहीं पर
अलार्म भरना बाकी है
चिड़ियों की चहचहाहट का
सुबह भेजना है
किरणों को स्कूल
ज़ल्दी उठकर टिफिन लगाना होगा
टनकार लगाएगा सूरज
उसकी भी चाय बनाना होगा
शीर्षक:- “उसके हिस्से भी कल इतवार आया था”
इत्तफ़ाकन उसका कल इतवार आया था
उसके हिस्से भी थोड़ा सा प्यार आया था
उलझी हुई लटें ज़रा सी सँवार दीं क्या मैंने
उस पगली को ख़ुद पर ही फिर प्यार आया था
उसके हिस्से भी कल इतवार आया था……
कूट रही थी किस्मत मैली, ज़रा मैंने दिया खंगाल
मन की मैली चादर पर फिर निखार आया था
उसके हिस्से भी कल इतवार आया था……
चाहतों की चाशनी में बना रही थी जलेबियाँ
मैंने उसमें बस ज़रा सा गुड़ मिलाया था
उसके हिस्से भी कल इतवार आया था…….
©अजय नेमा
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