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ABHIJEET CHATURVEDI KI KAVITA

शीर्षक:- शस्त्राग्रह
जीवन में जो ये गिराव है,
भावनाओं का भराव है;
नेतृत्व का चुनाव है, प्रगति को प्रेषित घाव है।
ये संघर्ष बीत जाएगा, मनोकर्म रीत जायेगा; योग्यता दिलाएगा, निराशा को मिटाएगा।
करुण हृदय की वेदना,
तनिक न दिल में घाव कर;
मनो विनोद त्याग कर, तू सत्य का चुनाव कर।
चिंगारियां जलेंगी जब,
शमर विलोप जायेगा;
आंधियां उठेंगी तब,
चिराग गीत गाएगा।
मशाल जो जला रहा,
मिसाल सा बन जाएगा;
नवीन युग जो आयेगा,
संतुष्टि को मिलाएगा।
श्याम मेघ छाएंगे,
बिन भाद्र मेघ आयेंगे;
नियति न तू रहेगी तब,
वो दौर लहलहाएंगे।
हे वीर न विचार कर,
नित कर्म कर प्रहार कर;
शमर पटे, पाप, लाशों से, तू अग्नि से श्रृंगार कर।
योद्धा तू हार न मूक बन,
वनवास को स्वीकार कर;
रत रहे तू कर्म में निरत,
नियति का तू संहार कर।
माना कि युग अनुकूल नहीं,
अनुनय में बरसे फूल नहीं;
बस अंगारों का शोला है, तो इक योद्धा ने अब बोला है।
संग्राम शमर का शोला है,
हाथों में बस्ता झोला है;
ये बारूदों का खोला है, अब एक चिंगारी बाकी है।
जद में अब आती खाकी है,
ये रक्तवर्ण ये लहू नहीं;
ये जवां जबां बेबाकी है।
ये शब्द छूटते बाणों से, शासन की ताका झांकी है;
वो थी अगस्त की चली गई,
अब शीत क्रांति भी आएगी;
जब कलम कटारी बन जाएगी, जब कलम कटारी बन जाएगी।
अभिजीत चतुर्वेदी की कलम से
शीर्षक:- संगृहीत प्रेयसी
माना कि प्रेम ये विह्वल है
अश्रु धार सी निर्मल है।
अब रीत प्रिय की लागी है,
वरना ये भी वैरागी है
ये रहता कहीं पहाड़ों में,
कंदराओं में अखाड़ों में।
अब किया प्रेम तो भुगतुंगा,
रम प्रिय प्रेम में जुगतुंगा।
हृदय पावन क्यों खोता है,
अब अश्रुबिंद भी रोता है।
ये प्रेम नहीं प्रत्याशा है,
जीवन ज्वलंत की आशा है।
शंभू भी अश्रु में जले गए,
राम कृष्ण भी छले गए।
है कौन ! कहे जो ये माया है,
न इसकी कोई काया है,
रहे नित निरंतर पुलकित ये,
अहोभाग्य प्रेम जो पाया है।
कई मिटे कल्प विषादों में,
रत रहे प्रियतम की यादों में।
प्रीत प्रेम चिनगारी है,
ये प्यासी एक बीमारी है।
ये सती मातु की रीता है,
हो प्रखर तो अनल पुनीता है।
वैराग्य प्रेम अवनीता है,
शंभू को इसने जीता है।