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Jagannath Rath Yatra : जगन्नाथ जी की रथयात्रा
भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है। भारत में आयोजित होने वाली रथ यात्रा को देखने हर साल विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं। यह रथ यात्रा उड़ीसा के पुरी शहर से हर साल निकलती है। रथ यात्रा को देखने हर साल विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं। जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी शहर में स्थित है।
इस रथयात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुंचने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है। जगन्नाथ रथयात्रा दस दिवसीय महोत्सव होता है। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। भारत के चार पवित्र धामों में से एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं। साथ ही यहां बलराम एवं सुभद्रा भी हैं।
एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलरामजी से नगर को देखने की इच्छा प्रकट की। तो फिर दोनों भाइयों ने अपनी बहन की इच्छा को पूरा करने के लिए भव्य रथ तैयार करवाया और उस पर सवार होकर तीनों नगर भ्रमण के लिए निकले थे। इसी मान्यता को मानते हुए हर साल पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा आयोजित होती है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर भारत की चार दिशाओं के चार सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। अन्य तीन में दक्षिण में रामेश्वर, पश्चिम में द्वारका और हिमालय में बद्रीनाथ को सबसे पवित्र माना गया है। जगन्नाथ पुरी का मंदिर दुनिया का एकमात्र मंदिर है जिसमें तीनों भाई-बहन साथ में विराजमान है भगवान कृष्ण, अग्रज बलराम और बहन सुभद्रा। वहीं इस भव्य यात्रा का समापन शुक्ल पक्ष के 11वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ होता है।
जगन्नाथ जी का रथ
भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष के नाम से जाना जाता है। इस रथ पर लहरा रहे ध्वज का नाम त्रिलोक्यमोहिनी है। इस रथ को गरुड़ध्वज के नाम से भी जाना जाता था। इस रथ में 16 पहिए होते हैं। यह रथ 13.5 मीटर ऊंचा होता है। इस रथ में खासकर पीले रंग के कपड़े का प्रयोग किया जाता है। विष्णु जी का वाहक गरूड़ इसकी रक्षा करता है।
बलराम जी का रथ
भगवान बलराम जी के रथ का नाम तालध्वज है। साथ ही इस रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। वहीं जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है, वह वासुकी कहलाता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा होता है। इसमें 14 पहिये होते हैं।
सुभद्रा का रथ
जगन्नाथ भगवान की छोटी बहन सुभद्रा का रथ का नाम पद्मध्वज है। साथ ही रथ को तैयार करने में काले और लाल रंग के कपड़ों का प्रयोग किया जाता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। इनके अश्व रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता हैं। साथ ही से खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं।
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