हमारी वेबसाइट “Science ka Mahakumbh” में आपका स्वागत है। हिंदी के प्रश्नों का एक सेट यहां दैनिक आधार पर प्रकाशित किया जाएगा। यहां पोस्ट किए गए प्रश्न विभिन्न आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं (जैसे एसएससी, रेलवे (एनटीपीसी), बैंकिंग, सभी राज्य परीक्षाओं, यूपीएससी, आदि) में सहायक होंगे।
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समास की परिभाषा भेद और उदाहरण
संक्षिप्तीकरण। इसका शाब्दिक अर्थ होता है – छोटा रूप। अथार्त जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं।
समास के भेद
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वन्द समास
6. बहुव्रीहि समास
समास के उदाहरण
रसोई के लिए घर इसे हम रसोईघर भी कह सकते हैं।
‘राजा का पुत्र’ – राजपुत्र
समास के बारे में संस्कृत में एक सूक्ति प्रसिद्ध है:-
वन्द्व द्विगुरपि चाहं मद्रे हे नित्यमव्ययीभावः ।
तत् पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः।।
समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को ‘पूर्वपद ‘ कहा जाता है और दूसरे पद को ‘उत्तरपद’ कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।
उदाहरण- :-
पूजाघर (समस्तपद) – पूजा (पूर्वपद) + घर (उत्तरपद) – पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)
राजपुत्र (समस्तपद) – राजा (पूर्वपद) + पुत्र (उत्तरपद) – राजा का पुत्र (समास-विग्रह)
सामासिक शब्द
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं।
उदाहरण-
रसोई के लिए घर = रसोईघर
हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी
नील और कमल = नीलकमल
राजा का पुत्र = राजपुत्र
समास विग्रह
सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास-विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग-अलग किय जाते हैं, उसे समास-विग्रह कहते हैं।
उदाहरण-
माता-पिता = माता और पिता।
राजपुत्र = राजा का पुत्र। ।
समास और संधि में अंतर
संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है। संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है उनका मूल अर्थ नहीं बदलता।
उदाहरण-
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय ।
समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है । समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है । समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है।
उदाहरण :-
विषधर विष को = धारण करने वाला अथार्त शिव ।
1. अव्ययीभाव समास
इसमें प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वो हमेशा एक जैसा रहता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही मने जाते हैं।
उदाहरण
यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
आजन्म = जन्म से लेकर
घर-घर = प्रत्येक घर
रातों रात = रात ही रात में
आमरण = मृत्यु तक
अभूतपूर्व = जो पहले नहीं हुआ
निर्भय = बिना भय के
अनुकूल = मन के अनुसार
भरपेट = पेट भरकर
बेशक = शक के बिना
खुबसूरत = अच्छी सूरत वाली
2. तत्पुरुष समास
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। यह कारक से जुड़ा समास होता है। इसमें ज्ञातव्य-विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण
देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
राजा का पुत्र = राजपुत्र
शर से आहत = शराहत
तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
तत्पुरुष समास के भेद
तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं।
1. कर्म तत्पुरुष समास
2. करण तत्पुरुष समास
3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास
4. अपादान तत्पुरुष समास
5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास
6. अधिकरण तत्पुरुष समास
कर्म तत्पुरुष समास
इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण
रथचालक = रथ को चलने वाला
माखनचोर = माखन को चुराने वाला
वनगमन = वन को गमन
मुंहतोड़ मुंह को तोड़ने वाला
स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
देशगत = देश को गया हुआ
जनप्रिय: = जन को प्रिय
करण तत्पुरुष समास
जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह य विभक्ति “के द्वारा” और ‘से’ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।
उदाहरण
भुखमरी = भूख से मरी
धनहीन = धन से हीन
बाणाहत = बाण से आहत
ज्वरग्रस्त = ज्वर से ग्रस्त
मदांध = मद से अँधा
रसभरा = रस से भरा
भयाकुल = भय से आकुल
आँखोंदेखी = आँखों से देखी
सम्प्रदान तत्पुरुष समास
इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति “के लिए” होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण
सभाभवन = सभा के लिए भवन
विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
स्नानघर = स्नान के लिए घर
सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह
यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
अपादान तत्पुरुष समास
इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह (से) या विभक्ति से अलग होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण
कामचोर = काम से जी चुराने वाला
दूरागत = दूर से आगत
रणविमुख = रण से विमुख
नेत्रहीन = नेत्र से हीन
पापमुक्त = पाप से मुक्त
जन्मरोगी = जन्म से रोगी
रोगमुक्त = रोग से मुक्त
सम्बन्ध तत्पुरुष समास
इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है । सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति “का, के, की” होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण
लोकतंत्र = लोक का तंत्र
दुर्वादल = दुर्वका दल
देवपूजा = देव की पूजा
आमवृक्ष = आम का वृक्ष
राजकुमारी = राज की कुमारी
जलधारा = जल की धारा
राजनीति = राजा की नीति
सुखयोग = सुख का योग
मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
सीमारेखा = सीमा की रेखा
अधिकरण तत्पुरुष समास
इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति’ में ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण
कार्य कुशल = कार्य में कुशल
वनवास = वन में वास
ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति
आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
दीनदयाल = दीनों पर दयाल
दान देने में वीर = दानवीर
आचारनिपुण : = आचार में निपुण
जलमग्न =जल में मन
सिरदर्द = सिर में दर्द
क्लाकशल = कला में कशल
शरणागत = शरण में आगत
तत्पुरुष समास के उपभेद
नञ् तत्पुरुष समास
उपपद तत्पुरुष समास
लुप्तपद तत्पुरुष समास
नत्र तत्पुरुष समास
इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नत्र तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण
असभ्य = न सभ्य
अनादि =न आदि
असंभव = न संभव
अनंत = न अंत
उपपद तत्पुरुष समास
ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है।
उदाहरण
नभचर, कृतज्ञ, कृतघ्न, जलद, लकड़हारा इत्यादि।
लुप्तपद तत्पुरुष समास
जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है।
उदाहरण
दहीबड़ा-दही में डूबा हुआ बड़ा
ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी
पवनचक्की – पवन से चलने वाली चक्की आदि ।
3. कर्मधारय समास
जिस समास का उत्तरपद प्रधान होता है, जिसके लिंग, वचन भी सामान होते हैं। जो समास में विशेषण-विशेष्य और उपमेय-उपमान से मिलकर बनते हैं, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
उदाहरण
चरणकमल = कमल के समान चरण
नीलगगन = नीला है जो गगन
चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
महात्मा = महान है जो आत्मा
लालमणि = लाल है जो
महादेव = महान है जो देव
कर्मधारय समास के भेद
1. विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास
2. विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास
3. विशेषणों भयपद कर्मधारय समास
4. विशेष्यो भयपद कर्मधारय समास
विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समासः
कर्मधारय समास का वह रूप, जिसमें पहला पद प्रधान होता है, उसे ‘विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास’ कहते है।
उदाहरण- :-
नीलीगाय = नीलगाय
पीत अम्बर = पीताम्बर
प्रिय सखा = प्रियसखा
विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास
इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं।
उदाहरण- :
कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा
विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं।
उदाहरण- :
नील- पीत
कहनी – अनकहनी
विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।
उदाहरण- :-
आमगाछ, वायस – दम्पति।
कर्मधारय समास के उपभेद
1. उपमान कर्मधारय समास
2. उपमित कर्मधारय समास
3. रूपक कर्मधारय समास
उपमान कर्मधारय समासः
कर्मधारय समास का वह उपभेद, जिसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है, उसे ‘उपमान कर्मधारय समास’ कहते है।
उदाहरण- :-
विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला
उपमित कर्मधारय समासः
कर्मधारय समास का वह उपभेद, जिसमें प्रथम पद ‘उपमेय’ होता है और द्वितीय पद ‘उपमान’ होता है, उसे ‘उपमित कर्मधारय समास’ कहते है।
उदाहरण-
अधरपल्लव के समान = अधर-पल्लव
नर सिंह के समान = नरसिंह
रूपक कर्मधारय समासः
जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है।
उदाहरण- :-
मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र ।
4. द्विगु समास
द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं | और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।
द्विगु समास के उदाहरण
नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
दोपहर = दो पहरों का समाहार
त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
त्रिलोक = तीन लोकों का समाहार
शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
पंसेरी = पांच सेरों का समूह
सतसई = सात सौ पदों का समूह
चौगुनी : = चार गुनी
त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
द्विगु समास के भेद
1. समाहारद्विगु समास
2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
समाहारद्विगु समास
समाहार का मतलब होता है समुदाय, इकट्ठा होना, समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं।
उदाहरण- :
तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
तीन भुवनों का समाहार = त्रिभुवन
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
1. बेटा या फिर उत्पन्न के अर्थ में।
उदाहरण- :-
दो माँ का = दुमाता
दो सूतों के मेल का = दुसूती।
2. जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है।
उदाहरण- :
पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
पांच हत्थड = पंचहत्थड
5. द्वन्द समास
इस समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता है। ये दोनों पद एक-दूसरे पद के विलोम होते हैं लेकिन ये हमेशा नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं।
उदाहरण
जलवायु = जल और वायु
अपना पराया = अपना या पराया
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
अन्न-जल = अन्न और जल
नर-नारी = नर और नारी
गुण-दोष = गुण और दोष
देश-विदेश = देश और विदेश
अमीर-गरीब = अमीर और गरीब
द्वन्द समास के भेद
1. इतरेतरद्वंद्व समास
2. समाहारद्वंद्व समास
3. वैकल्पिकद्वंद्व समास
इतरेतरद्वंद्व समास
वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते मेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।
उदाहरण
राम और कृष्ण = राम-कृष्ण
माँ और बाप = माँ-बाप
अमीर और गरीब = अमीर-गरीब
गाय और बैल = गाय-बैल
ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि
बेटा और बेटी = बेटा-बेटी
समाहार द्वन्द्व समास
समाहार का अर्थ होता है – समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं, तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।
उदाहरण
दालरोटी = दाल और रोटी
हाथ पाँव = हाथ और पॉव
आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा
वैकल्पिक द्वंद्व समास
इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या, अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है।
उदाहरण-
पाप-पुण्य = पाप या पुण्य
भला-बुरा =भला या बुरा
थोडा-बहुत = थोडा या बहुत
6. बहुव्रीहि समास
इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है। इसका विग्रह करने पर “वाला है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह” आदि आते हैं वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।
उदाहरण
गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका (शिव)
लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)
दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)
चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)
चक्रधर चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)
वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)
स्वेताम्बर = सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती)
बहुव्रीहि समास के भेद
1. समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
2. व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
3. तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
4. व्यतिहार बहुब्रीहि समास
5. प्रादी बहुब्रीहि समास
समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।
उदाहरण-
प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
दत्त है भोजन जिसके लिए = दत्तभोजन
निर्गत है धन जिससे = निर्धन
नेक है नाम जिसका = नेकनाम
सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा
व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।
उदाहरण-
शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
वीणापाणी में जिसके = वीणापाणी
तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है।
इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है।
उदाहरण-
जो बल के साथ है = सबल
जो देह के साथ है = सदेह
जो परिवार के साथ है = सपरिवार
व्यतिहार बहुब्रीहि समास
जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘ इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई।
उदाहरण-
मुक्के मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती
प्रादी बहुब्रीहि समास
जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है।
उदाहरण-
नहीं है रहम जिसमें = बेरहम
नहीं है जन जहाँ = निर्जन
समास युग्म में अंतर
कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर
कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। बहुब्रीहि समास में दो पद मिलकर तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं इसमें तीसरा पद प्रधान होता है।
उदाहरण-
नीलकंठ – नीला है जो कंठ – (कर्मधारय)
नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव – (बहुव्रीहि)
उदाहरण- नीलकंठ नील + कंठ
द्विगु समास और बहुब्रीहि समास में अंतर
द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुब्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है।
उदाहरण-
चतुर्भुज – चार भुजाओं का समूह
चतुर्भुज – चार हैं भुजाएं जिसकी
द्विगु और कर्मधारय समास में अंतर
द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है। द्विगु का पहला पद ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है।
उदाहरण-
नवरात्र – नौ रात्रों का समूह
रक्तोत्पल – रक्त है जो उत्पल
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