VARUN SINGH GAUTAM
वरुण सिंह गौतम बिहार के रतनपुर, बेगूसराय जिले के रहने वाले हैं। सोशल मीडिया पर वरुण सिंह गौतम के नाम से मशहूर अपने हिन्दी तथा अंग्रेजी के मार्मिक कविताओं और कहानियों जैसे विधाओं के लिए जाने जाते हैं। ये नए उभरते हुए भारतीय कवियों और लेखकों में से एक है। इनका पहली पुस्तक मँझधार ( काव्य संग्रह ) है, जिसको इन्होंने कोरोना काल के दौरान लिखे हैं।
वरुण सिंह गौतम का जन्म १५ मार्च २००३ को बिहार के बेगूसराय जिले के फतेहा गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के डॉक्टर देव नारायण चौधरी सरस्वती शिशु विद्या मन्दिर से की हैं। उसके बाद की शिक्षा वर्तमान में जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय , बिहार में बारहवीं मानविकी में अध्ययनरत हैं। इनके पिता का नाम धीरेन्द्र सिंह उर्फ दीपक कुमार और माता का नाम रूबी देवी हैं। वरुण सिंह गौतम अपने माता – पिता के इकलौते सन्तान हैं।
इनका कहना है कवित्त तो पूरे सृष्टि में कण – कण में व्याप्त है। इन तत्व को अंतर्द्वन्द भावनाओं को छोड़ बहिर्द्वन्द के तत्वों में ढूंढना अनन्त्य अनावश्यक है। अगर वो व्यक्ति स्वयं में तलाशना और निखारना शुरू कर दे तो वो भी सम्पूर्ण सृष्टि को कवित्त मान बैठेगा।
” कवि कवित्त के तत्वों के अस्तित्व में
अस्तित्व ही पहचान का उसूल है ”
इनकी पहले साहित्य के दौर में रुचि नहीं थी लेकिन कोरोना काल की भयावहता इनको साहित्यिक दौर में काव्य विधा के क्षेत्र में लाकर खड़ा कर दिया।
इनके बहुत सारे रचनाएँ , जो प्रकृतिवादी और रहस्यवादी भावों आदि का संचलन लोगों को जाग्रत करने का अनवरत ही प्रयत्न करती रहती है। इनका एक ही उद्देश्य है भारत का ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनना और राष्ट्र की सेवा करना । इनके जीवन संघर्ष के प्रणेता भारत के इतिहासों में स्वर्णिम अक्षरों में विद्यमान सम्राट महान अशोक हैं। जीवन के शुरुआती समय में ही लेखक साहित्य के प्रेम रूपी बन्धन में बँध चुके हैं । उन्हें यह विश्वास है कि इनकी लेखनी अबाध गति से निरन्तर चलती रहेगी , चलती रहेगी , चलती रहेगी…..
देह या मानव (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM देह या मानव ये प्रिय तुम्हारे हृदय के भूगोल मेंखगोलीय कांति हैजो मुझे बार – बार आकर्षित कर रही हैया फिर तुम्हारे देह के भूगोल मेंआखिर कौन इतिहास है!जो बार – बार तुम्हें और ज्यादा ही सौन्दर्य बनाती हैहै प्रिय सच जान लो मैं अपने प्रीत लिएतुम्हें …
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होली आई (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM होली आई होली आई होली आईढ़ेर सारी खुशियाँ लायीरङ्गों का त्योहार हैबच्चों का भी हुड़दङ्गकहीं पिचकारी की रङ्ग तोकहीं कीचड़ों की दङ्गजहाँ भी अबीर – गुलाल के सङ्गकहीं ढोल बाजा तोकहीं अंगना की गीत – गानाफाल्गुन की होलीवसन्त की होलीजहाँ खेतों में सरसोंइठलाती हुई गेहूँ की बालियाँआम्र मञ्जरियों …
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दीपावली (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM दो दीये दिन में जलेदो दीये रातचार चांदनी लगेदो दिन बरसातक्षिति का स्पंदन हैकिरणें बिखेरती प्राची सेप्रतीची भी शरमा गए दोनों दीप-ज्योति सी फैल गएचहुंओर…..!रात में कांति उमंग उत्साह उत्सव हैश्रीराम शरवृष्टि की हुंकार गर्जन हैलंकापति रावण भी थरथरा गये अयोध्या की नगरी सरयू हैकाशी में अस्सी घाटहजार-लाख-करोड़ दीप …
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भारत (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM मैं भी हूं भारत के नागरिक आप आश्चर्य होंगे, किन्तु हूं भूखें नंगे गरीब गंदे में फैले इंसान मेरे मां बाप भी हैं, दो बच्चें भी बीमारी, आंशू की रक्त बहा रहे जो कचरों के ढ़ेरों में चुनने गए हैं अपनी भविष्य या सुनहरी स्वप्न नहीं! , अपितु फेंके …
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By- VARUN SINGH GAUTAM गूंज उठी भुवन में गूंज उठी भुवन में, ज्योति जली सकल अविनाशीसुर सुर सुरेश्वरी, दसो दिशाओ में तेरी जय जयकारबाधा विध्न को हरण कर , संताप हरे वैष्णवी करूणेश्वरीरास जीवन हंस विहारनी श्वेतकमल कली सृजनहारजय जय जय श्री नारायणी हंसवाहिनी सर्वेश्वरीदिव्य स्वरूपी सुरवन्दिता बिखरे पंचभूत कण – कण मेंरचे कला स्वर …
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By- VARUN SINGH GAUTAM बसन्त पंचमी बसन्त पंचमी का महोत्सवचहुंओर फैली खुशियोंत्सवपेड़ों को डालियाँ झूल उठीक्या बच्चें या पक्षियों का खेल !कहीं दूर से देखो बन्धुसुनायी दी कू की अमराईमानो जैसे वो दे रहा…..निमंत्रण ऋतु के ऋतुराज कोसूर्य के देखो ऊपर की किरणेकितने जगमग ज्योति विशालपक्षियों की चहचहाहट गूंज उठीयह किलकारियाँ किस शैशव की !मुरली …
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By- VARUN SINGH GAUTAM शारदा माँ बसन्त पंचमी शारदा का महापर्वज्ञान ज्योति जग घर – घर विशालधूप – दीप – अगरबत्ती – फल – मेवापूजा वन्दन करे माँ भवानी के हमवीणा बजी स्वर ध्वनि सा रे ग म पमणि जड़ित माला फेर करें हुँकारपुस्तक ले पढ़ें महाज्ञान का पाठयह लय मधुर – मधुर सरगम सारकभी …
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By- VARUN SINGH GAUTAM निःशेष लिए… भाग-2 हाँ, कोई हैमेरे जीवन को सुदृढ़ लिएपरिस्थितियां देखमुझे बताती, समझाती भी हैसच में वोबहुत ही ज्यादा अच्छी हैंइस सफ़र को आनन्द मेंउत्साह भर भर देती हैएक हुँकार लिएसमर शंखनाद कोकृष्ण नहीं पार्थ हैपर कोई हैसशरीर नहीं, है सहृदयदेखूँ तो कैसेपर इसे तईं हैशब्द मात्र कहूँया वर्ण मात्रया सिर्फ …
निःशेष लिए… भाग-2 Read More »
परिशुद्ध हैं ये हिन्दी उज्ज्वल प्रांगण में प्रज्ञा दीप है हिन्दी हेर हेर कैसे उड़ते पंख पंक्ति में कहो…
By- VARUN SINGH GAUTAM कवित्त भाग – नौ क्या स्थिति आ गई है भारत की ?अभी पशुओं भोजन तलाश रहेअब मनुष्यों की यही दशा होगीकुछ हैं भी, देखें है धुंध झोपड़ियों में रहतेकर रहे कुछ और हाहाकारकुछ तो हैं शहंशाही परिवारअपना पेटी भरना बन्द करो दुर्जनोंकितना! और किसको खाओगेकुछ लुफ़्त पर्याय हो रहेअब आ रही …
कवित्त भाग – नौ Read More »
By- VARUN SINGH GAUTAM कवित्त भाग – आठ अकस्मात् अँसुवानाअंबुनिधि – सीअकत है।अकथ् हैअंशुमाला कीगहना है किन्तुअकरासू को गहनताअकथ्य है।अकर्षण हैअकच्छ कीअकर्मण्यता, अकरास रखनाअकर है।अकरुण, अकरखो अकरणीयसमर्थ है,अउअंशुपति नहींअकिंचितज्ञ हैये अखिल सी अकावआच्छादित है। S. NO. VARUN SINGH GAUTAM 1 एक घड़ी या दो घड़ी…. 2 एक पैग़ाम ( ग़ज़ल ) 3 मैं हूँ निर्विकार …
कवित्त भाग – आठ Read More »
तेरे शरीरों की चुम्बन पाने की तड़प सिर्फ शरीर में ही है कहां बिखेरे ! कहां उड़ेले ! बस विपरीत नफ़्स चाहत पाने…
कल्पनाओं के पहाड़ों में मैं बोझिल हूँ, मरणासन्न ओर ठुकरा दिया ये महफ़िल भी मैं अब कवित्त भी नहीं…
मैं प्रेमी तो था, पर अब नहीं क्योंकि आसक्ति है ही नहीं झुरियां तो खिल उठीं है ज्वाला सी बवंडर बनके शरीर भी मेरी फूट…
हाँ, कोई है मेरे जीवन को सुदृढ़ लिए परिस्थितियां देख मुझे बताती, समझाती भी है सच में वो बहुत ही ज्यादा…