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छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्यौहार कैसे मनाया जाता है | Chhattisgarh Chherchhera Festival
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छेरछेरा त्यौहार हर साल पौष मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्यौहार साल 2025 में छेरछेरा का पर्व 13 जनवरी, सोमवार को मनाया जाएगा। पौष पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 13 जनवरी को सुबह 5:45 बजे होगी और इसका समापन 14 जनवरी को सुबह 3:59 बजे होगा। जब किसान अपने खेतों से फसल काटकर एवं उसकी मिसाई कर अन्न (नया चावल) को अपने घरों में भंडारण कर चुके होते है तब छेरछेरा त्यौहार मनाया जाता है। यह पर्व दान देने का पर्व है। किसान अपने खेतों में साल भर मेहनत करने के बाद अपनी मेहनत की कमाई धन को दान देकर छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं। माना जाता है कि दान देना महा पुण्य का कार्य होता है। किसान इसी मान्यता के साथ अपने मेहनत से उपजाई हुई धान का दान देकर महान पुण्य का भागीदारी निभाने हेतु छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं।
सभी किसान बहुत ही उत्सव से यह त्यौहार मानते है ग्रामीण क्षेत्र में लोग धान दान करते है बच्चो को तथा शहरी क्षेत्र वाले लोग पैसा दान करते है कुछ खाने को भी दे देते है जिससे बच्चे बहुत खुश हो जाते है। इस दिन बच्चे अपने गांव के सभी घरों में जाकर छेरछेरा कह कर अन्न का दान मांगते और सभी घरों में अपने कोठी अर्थात अन्न भंडार से निकालकर सभी को अन्नदान करते हैं। गांव के बच्चे टोली बनाकर घर-घर छेरछेरा मांगने जाते हैं।
छेरछेरा त्यौहार के दिन शाकम्भारी देवी की पूजन विधि विधान से की जाती है। शाकम्भारी देवी की पूजन विधि विधान से करने के बाद धान मांगने जाते है। छेरी, छै+अरी से मिलकर बना है। मनुष्य के छह बैरी काम, क्रोध, मोह, लोभ, तृष्णा और अहंकार है। बच्चे जब कहते हैं कि छेरिक छेरा छेर मरकनीन छेर छेरा तो इसका अर्थ है कि हे मकरनीन (देवी) हम आपके द्वार में आए हैं। माई कोठी के धान को देकर हमारे दुख व दरिद्रता को दूर कीजिए। यही कारण है कि महिलाएं धान, कोदो के साथ सब्जी व फल दान कर याचक को विदा करते हैं।
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