बेटी की विदाई (कविता)

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बेटी की विदाई (कविता)
बेटी की विदाई (कविता)

कन्या दान हुआ जब पुरा, आया समझ विदाई का।
हँसी खुशी सब काम हुआ था, सारी रस्म अदाई का।।

बेटी के उस कातर स्वर ने, बाबुल को झकझोर दिया।
पूछ रही थी पापा तुमने, क्या सचमुच मे छोड़ दिया।।

अपने आंगन की फुलवारी, मुझको सदा कहा तुमने।
मेरे रोने को पलभर भी, बिल्कुल नहीं सहा तुमने।।

क्या इस आँगन के कोने मे, मेरा कुछ स्थान नहीं।
अब मेरे रोने का पापा, तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं।।

नहीं रोकते चाचा ताऊ, भैया से भी आस नहीं।
ऐसी भी क्या उदासी हैं, आता कोई पास नहीं।।

बेटी की बातों को सुन के, पिता नहीं रह सका खडा।
उमड़ पड़े आँखों से आँसू, बदहवास सा दोड़ पड़ा।।

माँ को लगा गोद से कोई, मानो सब कुछ छीन चला।
फूल सभी घर की फुलवारी से, कोई ज्यों बीन चला।।

बेटी के जाने पर घर ने, जाने क्या क्या खोया है।
कभी न रोने वाला पिता भी आज फूट फूट कर रोया है।।

~ By Nitesh Kumar

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