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राष्ट्रीय खेल दिवस – वैश्विक खेल पटल पर भारत की अमिट छाप छोड़ने वाले मेजर ध्यान चंद करोड़ों खेलप्रेमियों की प्रेरणा है। भारतीय खेल का इतिहास और देश का हर खेल प्रेमी आपका ऋणी है। मेजर ध्यानचंद जी की जयंती पर शत्-शत् नमन एवं खेल दिवस की आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं|
खेल दिवस के क्या मायने हैं?
क्या क्रिकेट ही” खेल” है ?
क्या खेलों को राजनीति से दूर रखना चाहिए!? यदि दूर रखना चाहिए तो राजनीति इसमें क्यों आती हैं!
क्या खिलाड़ियों को वो हर सुविधा उपलब्ध कराई जाती हैं,जिसके वो हकदार होते हैं?
प्रस्तुत है मेरी छोटी सी आलेख
टीवी की बात है
दौर की बात है
ध्यानचंद में वो “टीवी युग ” होता तो ध्यानचंद आज सचिन से भी ज्यादा लोकप्रिय होते ।
कई के लिए अब भी मेजर ध्यानचंद एक गुमनाम चेहरा है।
सरकार और राजनीतिक चाटुकारों के लिए मेजर ध्यानचंद एक राजनीतिक वस्तु बन गई है।
सरकार किसी की भी रही ,मेजर ध्यानचंद को अब तक इंसाफ नहीं मिला । खेल रत्न पुरस्कार का नाम ध्यानचंद जी के नाम से करने की कवायद कब से की जा रही थी ,लेकिन आखिरकार ये पल आ ही गया।
खेल दिवस का जब आयोजन कराया जाता है तो इसके नाम पर इक्के दुक्के ही खेल कराए जाते हैं। क्रिकेट हर गली – चौराहे में आज खेला जा रहा है । क्या हॉकी के लिए छोटा सा पार्क या surface बच्चों के लिए हर गांव नहीं बनाया जा सकता। क्रिकेट के जैसा कबड्डी के खेल को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता?? नहीं चोट लग जायेंगे , कपड़े गंदे हो जायेंगे ।
ये बात तो है कि खेल में भारत आगे आ रही है और सरकार भी इस ओर प्रयास कर रही है। लेकिन क्या ये काफी है???? क्या इसे सराहनीय कहा जा सकता है? क्या बॉलीबॉल ,फुटबॉल , बैडमिंटन जैसे खेलों को उतना सपोर्ट मिल रहा?? क्या सभी राज्य खेलों के प्रति अग्रसर हैं ? ( ये आप राज्यों के प्रदर्शन के आधार पर खुद तय कर सकते हैं।)
क्या खिलाड़ियों को उतना सपोर्ट मिल रहा है,क्या नए टैलेंट खोजे जा रहे हैं,जिसकी जरूरत है। क्या गरीबी अब भी बाधक है खिलाड़ियों के लिए??! क्या समाज अब भी लड़कों और लड़कियों को खेलों के लिए और भी खेल के लिए वो भाव रखता है।
बहुत से सवाल का जवाब हमें खुद मालूम है। कहने को तो बहुत कुछ है। फिर भी एक सवाल और है “क्या खेलों को राजनीति से दूर रखना जरूरी है?”
कहां गया वो दौर , जब हॉकी में हमारी तूती बोलती थी। 1980 में इसका पतन होना शुरू हो गया। अब फिर से क्रेज शुरू हुआ है,लेकिन अब और देश आगे हैं हमसे। हॉकी के लिए वो फेज हमारे देश में है ही नहीं। ये राष्ट्रीय खेल के साथ मजाक नहीं तो क्या है। टीवी पर क्रिकेट पैशन है तो हॉकी बोरिंग !!!! वाह वाह !!!! कटु सत्य है । मेरी खेलों में दिलचस्पी क्रिकेट को लेकर शुरू हुई थी। पहले भी मुझे इसी क्रिकेट को लेकर रोना आता था। लेकिन अब समझता हूं ना हमारे देश में अन्य खेलों का प्रोत्साहन कितना जरूरी है। ना सिर्फ जरूरी ही नहीं है,बल्कि खेल को उस स्तर पर पहुंचाना कि विश्व स्तर पर हमारी एक अलग पहचान बने ।
हर सदस्यों को भी पता चले कहां क्या चल रहा है इस देश में क्रिकेट की चिंता करने वाले करोड़ मिल जायेगे
किसी को भारतीय हॉकी के कप्तान का भी नहीं पता होगा ना मैन में, ना लेडीज में
कुछ को ही पता होगा
आई पी एल में 8 टीम खेलती है
हर खिलाड़ी का पता सब गूंगे बहरे को भी पता होगा .
ये नहीं पता होगा ,सेंटर फारवर्ड कहां किस खेल में आता है
अतः इस पर बहस होनी चाहिए भारतीय खेल या क्रिकेट
पर ,रुचि पर …
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